गाँव बना शहर
गाँव बना शहर
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मैं आया था
गाँव घूमने
मुझे यहाँ पर
शहर मिला
बड़ा ही
बेसिरपैर मिला
मैनें ढूँढी
कच्ची झोपड़ियां
फूस की छतें
खुला आँगन
साँझा चूल्हा
साँझी चौपाल
साँझा कुँआ
सांझां हुक्का
सबका हाल
बेहाल मिला
आदमी हो गया
कमरा कमरा
पक्के दिल के
साथ मिला
जब पड़ी पहली
पहली बरखा
की बूँद टपकी
कहाँ गई
वो सोंधी मिट्टी
कहाँ गई
वो बसी साँस
में महकी गंध
जहां ढूँढता सोंधी मिट्टी पत्थर मुझे
हर बार मिला
कैसे देखूँ
उड़ती गोधूली
जब गायें
मुझे नही, दिखी
जहाँ कभी थी पगडंडी
वहाँ बन गई
सड़कें पक्की इस बार
मुझे अब
धूएँ का गुब्बार उड़ाती
कारों का बाज़ार मिला
मैं गया था
गाँव घूमने
वहाँ मुझे
इक शहर मिला
बड़ा ही
बेसिरपैर मिला
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राजेश’ललित’