गाँव जब शहर हुआ
गाँव जब शहर हुआ
मेरा गाँव,मेरे लोग,प्यारे लोग
खट्टी बात,मीठी बात,उजली रात
प्यार मोहब्बत,खेल में हूल्लत
यार की दावत,इश्क़ मुर्रव्वत
चरख़ा गुल्लक,टायर, कंचा
गिल्ली डंडा, खेल था सच्चा
हवा में उड़ना ,छत से कूदना
लट्टू चलाना ,पतंग उड़ाना
पीपल का झूला,पानी में डुबकी
चाची का आँचल,चाचा की घुड़की
सरपट साइकल हाथ में झंडी
पोखर,पनघट और पगडंडी
तितली के पीछे,दुनिया से आगे
ज़िंदगी से पढ़कर,स्कूल से भागे
अमिया,अमरूद,बेर ,शहतूत
मन को है जोड़े,क्या क्या नहीं तोड़े
मुर्ग़ी, बत्तक,पतंगा या पतंग
इश्क़ या बाज़ी दौड़े संग संग
पड़ोस वाले भैया हों या मुखिया चाचा
बबलू मामा या फटा पजामा -है मन सच्चा
मेरी अम्माँ और छोटकी चाची-है दीया बाती
बब्बा नाना और दादा काका -है सब साथी
बाढ़ था आया फ़सल सनाया
सबने मिलकर खाना बनाया
फटेहाली में जश्न मनाया
बारिश को था ठेंगा दिखाया
काले बादल छाने लगे
हवा को रूख बतलाने लगे
दोस्त शहर को जाने लगे
हमको भी समझाने लगे
जाने किसकी लग गयी नज़र
पता नहीं किसका था क़हर
छांव में भी लगे धूप का डर
पहला पहर भी लगे दोपहर
हम सब का था मिट्टी का घर
हमने लगा दी थी अपनी नज़र
भटके थे जब हम ख़ुद डगर
गाँव को बना दिया था शहर
यतिश १३/९/२०१७