“गाँव की यादे”
बैलगाड़ी की सवारी याद आती है,
मुझको गाँव की कहानी याद आती है!
कट गए बाग उजड़ गए जंगल,
याद है मुझको अपने गाँव का दंगल!
वो ईद की सेवइया वो होली के रंग,
वो क्या दिन थे जब हम थे एक संग!
वो मिट्टी की खुसबू वो बागो के फूल,
क्यों दूर हो गई मुझसे वो गाँव की धूल!
वो गाँव के आदर्श वो गाँव की चौपाल,
फिर याद आई मुझे जब गुज़र गए कई साल!
अपने नही यहा गैरो का बसर है,
लोग कहते है ज़ैद ये शहर है!
पक्का नही मगर मकान कच्चा था,
इस शहर से हमारा गाँव अच्छा था!
अब फिर बैलगाड़ी की सवारी याद आती है,
मुझको गाँव की कहानी याद आती है!!!!
((( ज़ैद बालियावी )))