गाँधी
गाँधी
लाख मुसीबत आने पर भी,तू अपने पथ पर खड़ा रहा।
हिंसा की शर से बिंध जाने पर भी,तू अहिंसा से भरा रहा।
बाधाओं के पहाड़ से भी,तू दृढ़प्रतिज्ञ कड़ा रहा।
वनपति के दहाड़ से भी,तू दृढ़निश्चयी अड़ा रहा।
निर्धन जन का भूप तू,नृसिंह, वामन का रूप तू।
तम की निर्जन अँधियारी में सूरज की सुनहरी धूप तू।
प्यारा चरखा, प्यारी खादी, प्यारी थी तुमको आजादी।
शोषित,पद दलित भारत में आज़ादी तुमने फैला दी।
रक्षा की तुमने विवेक-खोते को,सिखलाया हँसना रोते को।
अलख जगा,घूम घूम बिस्तर से जगाया,ऊँघते-सोते को।
भारत भाग्य निर्माता नहीं गौण, थे वीर पुरूष तुम कौन।
बैठी रह न सकी तेरी पौरुषता, रह न सके तू मौन।
हम सबका रखवाला,दहक,दासत्व की झाला।
धधकती नित नूतन पौरुषता का दिव्य ज्वाला।
सचमुच तुम सेनानी कान्धी, वीर व्रतधारी मोहन गाँधी।
बिगूल फुकने से तुम्हारी, जन-मन में मची अनोखी आँधी।
काँटे-कण्टक और शूलों से तू अपने जीवन में डरा नहीं।
गोडसे की गोली से मरकर भी, तू पौरुष-सुधीर मरा नहीं।
धिक,धिक धिक्कार है उस कातिल नाथू हत्यारे पर।
न्योछावर है दुनिया,तुझ बापू रूपी सितारे पर।
संसार नमन करता बापू,ऐसा युगद्रष्टा, तू युगचेता था।
अपना बापू,जगत का बापू,जनमन का सच्चा नेता था।
-©नवल किशोर सिंह