गाँधी महान
आश्चर्य है कि
हर बदलाव
अनन्त सदियों से
चाहता रहा है खून।
चाहे वह रावण का सिर हो
या कौरवों का कटे हाथों से
छिटका हुआ नाखून।
या फिर सम्राट अशोक का
विजय अभियान।
इतने तेजस्वी युगों में भी
पुरूषोत्तम हों या योगिराज
मनोबल से ला न पाये
कोई बदलाव।
रचना पड़ा रण।
ईश्वर को भी
युद्ध का कलिंग–क्षेत्र।
कोई बदल न पाया
परिवत्र्तन के लिए विध्वंस का
आदिम सोच।
यह तो गाँधी थे जिन्होंने
कर दिया मजबूर
पराजित होने को
एक महान साम्राज्य के
सम्राट का अनास्त सूर्य वाला
कठोर जिद्दी सोच।
गाँधी जी थे महान
हैं महान
रहेंगे महान।
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