ग़लत बात है
……… गीतिका……….
===== ग़लत बात है=====
पत्थर में भगवान ,सोचना ग़लत है।
मौलवी पे उपचार,कराना ग़लत है।।
आदमी को आदमी, ही रहनें दो।
जाति-भेद दंगा, कराना ग़लत है।।
इंसा से इंसा का, भेद है पागलपन।
ऊंच-नीच की बात,सुनाना ग़लत है।।
माना गुरु का पद , सबसे है ऊंचा।
द्रोणाचार्य की तरहा, होना गलत है।।
आदमी को आदमी, छू ले तो पापी।
मल- मूत्र से उसको, नहलाना ग़लत है।।
शिक्षा की दोगली, नीति बनाकर ।
शिक्षा का उपहास, करना ग़लत है।।
हो अगर अन्याय, सहे किस्मत समझकर।
अन्याय को सहना, बहुत ही ग़लत है।।
बेटा-बेटी का भेद, होता पीछडापन।
बेटी को घर में, बिठाना ग़लत है ।।
कौन कहता है, नारी कमजोर होती।
फूलन की तरहा, मजबूर करना ग़लत है।।
सच को सच बोलो, हमेशा तान सीना।
झूठ का प्रचार ,करना बहुत ग़लत है।।
अन्याय के आगे, जो झूके रहते हैं हरदम।
उनका तो हर हाल में, जीना ग़लत है।।
चाहे चलना ही पड़े उम्र भर अकेला।
गीदडो के झूंड में, रहना ग़लत है।।
तुम बढ़ोगे आगे तो, भौकेगें कुत्ते।
डरकर इनसे, बैठ जाना गलत है।।
हैं ग़लत हर बात वो, सुन लो ए-सागर।
अच्छो में जो ढूंढता, हर बात गलत है।।
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मूल रचनाकार…..
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
(इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित)
9149087291