ग़रीब
एक आह गुज़र रही है उसके क़रीब से
तुम पंगे मत लो किसी ग़रीब से।
अटरिया की खिड़की से ज़िन्दगी नहीं दिखती
तुम जाओ जी लो ज़िन्दगी उसकी दहलीज़ पे।
मंदिर-मस्जिद ना जाओ भले तुम,
दो रोटियां उसे दे आया करो दीवाली या ईद पे।
तुम बड़े नोट उड़ा देते हो शाही शौक़ में
वो रोज़ दो पैसे बचा लेता है तरक़ीब से।
दौलत चाहिए तो सेठों के पास चले जाओ
चैन चाहिए तो दोस्ती करलो किसी शरीफ़ से।
उसने अपने चैनों-सुकूँ को क़ुर्बान कर दिया,
और तुम्हे बकरा चाहिए बक़रीद पे?
ख़ुदा-भगवान, इंसान-शैतान-हैवान, कंगाल-धनवान
सब कुछ है ग़रीबी में, सब कुछ तो है ग़रीब में।