ग़रीबों को फ़क़त उपदेश की
ग़रीबों को फ़क़त उपदेश की घुट्टी पिलाते हो
बड़े आराम से तुम चैन की बंसी बजाते हो
غریبوں کو فقط اپدیش کی گھٹی پلاتے ہو
بڑے آرام سے تم چین کی بنسی بجاتے ہو
है मुश्किल दौर सूखी रोटियाँ भी दूर हैं हम से
मज़े से तुम कभी काजू कभी किशमिश चबाते हो
ہے مشکل دور سوکھی روٹیاں بھی دور ہیں ہم سے
مزے سے تم کبھی کاجو کبھی کشمش چباتے ہو
नज़र आती नहीं मुफ़्लिस की आँखों में तो ख़ुश-हाली
कहाँ तुम रात-दिन झूठे उन्हें सपने दिखाते हो
نظر آتی نہیں مفلس کی آنکھوں میں تو خوشحالی
کہاں تم رات دن جھوٹھے انہیں سپنے دکھاتے ہو
अँधेरा कर के बैठे हो हमारी ज़िंदगानी में
मगर अपनी हथेली पर नया सूरज उगाते हो
اندھیرا کر کے بیٹھے ہو ہماری زندگانی میں
مگر اپنی ہتھیلی پر نیا سورج اگاتے ہو
व्यवस्था कष्टकारी क्यूँ न हो किरदार ऐसा है
ये जनता जानती है सब कहाँ तुम सर झुकाते हो
ووستھا کشٹکاری کیوں نہ ہو کردار ایسا ہے
یہ جنتا جانتی ہے سب کہاں تم سر جھکاتے ہو
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