ग़रीबी तो बचपन छीन लेती है
वो कूड़ा से कचरा बीन लेती है
ग़रीबी तो बचपन छीन लेती है
झोला को बैग मानकर टांग लेते
पेट के खातिर खाना मांग लेते
लाचारी जब दिल को नोचने लगे
जिंदगी में कई फैसला रांग लेते हैं
रात में चुप्पी तारे गिन लेती है
ग़रीबी तो बचपन छीन लेती है
जाने किसके हैं वो सताये हुए
धूप में पसीना से नहाये हुए
उड़ती रंग,फटे कपड़े,टूटें चप्पल
किस्मत पर आंसू बहाये हुए
दर्द,आंसू अपने अधीन लेती है
ग़रीबी तो बचपन छीन लेती है
जिंदगी ठहर- ठहर रूक जातीं हैं
कम उम्र में ही कमर झुक जातीं हैं
मुश्किल भरीं है ज़िन्दगी की राहें
आतें आते कामयाबी चूक जातीं हैं
वक्त पांव तलें की जमीन लेती है
ग़रीबी तो बचपन छीन लेती है ।
नूर फातिमा खातून” नूरी”
जिला -कुशीनगर