ग़रीबी एक अभिशाप है !
ग़रीबी एक अभिशाप है !
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ग़रीबी एक अभिशाप है !
ग़रीबी एक संताप है !
ग़रीबों का जीवन बड़ा ही दु:खमय !
इसका हमें आभास है !!
ग़रीबी की परिकल्पना मात्र से रूह काँप जाती है !
इस संसार में कोई ग़रीब ही क्यों है ?
जिज्ञासु हो, मन विह्वल हो उठता है !
ईश्वर तू ज़रा , जवाब तो दे दो ।
ऐसा अन्याय तू , क्यों करता है ??
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किसी को , ज़रूरत से ज़्यादा अमीर बनाता !
किसी की रसोई का , चूल्हा तक न जलाता !
इस दुनिया को तू , ये तो बतला दो !
अमीरी ग़रीबी का , फ़र्क़ तू मिटा दो !
समानता का भाव , सर्वत्र फैला दो !
दुनिया से ग़रीबी का, दंश तू मिटा दो !!
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सूरज की लाली , जब है निकलती !
ग़रीबों को , थाली की चिंता सताती !
कि आज ईश्वर उन्हें , काम कहाँ है दिलाती ?
अनिश्चय की स्थिति , खूब टीस है दिलाती !!
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बीबी – बच्चों की आस , उनपे ही टिकी हैं।
पर रहने को उन्हें , कोई घर नहीं है ।
खाने को , दो वक्त की रोटी तक नहीं है।
तन ढकने को , तनिक वस्त्र नहीं है ।
बच्चों की तरक्की के , अवसर नहीं हैं ।।
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ग़रीबी में , ग़रीबों की मनोदशा क्या होगी ?
ग़रीबों के हृदय की आग, कितनी धधकेगी !
काम की आस में , मन की बेचैनी और बढ़ेगी !
पर , ग़रीबों के आँसू से , दुनिया तड़पेगी !!
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ग़रीब है तो क्या हुआ ?
उन्हें भी हक़ है , ज़िंदगी जीने का !
बीबी – बच्चों के , पेट भरने का !
बच्चों की देखभाल करने , व भविष्य बनाने का !
एक सुंदर घर के सपने , उनके भी होंगे !
दिल में छुपे अनेकों अरमान , उनके भी होंगे !!
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आओ मिलजुलकर , दुनिया से ग़रीबी भगाएं ।
ज्ञान की ज्योति जला, इस अभिशाप को मिटाएं ।
ग़रीबों को जागरूक कर , उन्हें रोज़गार दिलाएं ।
दुनिया में उन्हें भी , जीने का हक़ दिलाएं ।
ग़रीबों की दुआ पाकर,जीवन का सच्चा आनंद उठाएं।।
_ स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कु० कर्ण ।
__किशनगंज ( बिहार )
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