ग़म का साया
ग़म का साया
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मेरे दिल पे ग़मों का साया है।
बीती बातों ने फिर रुलाया है।।
वक्त जो गुजरा ना लौट पाया है।
वक्त को कौन रोक पाया है।।
बात के जख्म कब भरते हैं।
कितती बातों ने दिल दुखाया है।।
एक खुशी ढूढनें से नहीं मिलती।
ग़म बिना ढूंढे ही हमने पापा है।।
दिल बुझा-बुझा है जाने क्यूं।
जाने क्या खोया है क्या गवांपा है।।
हमने यादों से दिल लगाया है।
फिर कहां दिल को चैन आया है।।
गूंजती है उनकी आवाज़ें दिल में।
जैसे कोई शेर गुनगुनाया है।।
बोलती आँखें कह रही थी जाने -क्या।
फिर ख्यालों ने आंखों को छलकाया है।।