“ग़म का दरिया”
ग़म का दरिया पार करना सीखिए !
मुश्किलों के पर कतरना सीखिए !!
वक़्त की सरगोशियाँ ये कह रही !
अज़्म में अंगार भरना सीखिए !!
हाथ फ़िर मोती लगेंगे ख़ुद- ब- ख़ुद !
बस समंदर में उतरना सीखिए !!
हर तरफ़ खुशबू बिखरती जाएगी !
फूल सा बनकर निखरना सीखिए!!
रंजो ग़म सारे जहाँ के छोड़ कर !
इक खुशी में ही विचरना सीखिए !!
कह रहा है जो मुसाफ़िर सब सुनो !
अब कलम से ही सँवरना सीखिए!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
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