ग़म-ए-रोज़गार
शायरी-वायरी से
पेट न भरेगा
कोई काम करो
कोई काम!
झूठी वाहवाही से
घर न चलेगा
कोई काम करो
कोई काम!!
मूर्दापरस्तों का
समाज है यह
सदियों से यहां तो
रिवाज है यह!
हर सच्चा फनकार
बेमौत मरेगा
कोई काम करो
कोई काम!!
Shekhar Chandra Mitra
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