ग़ज़ल_ बेवफ़ाई
अब तराना मुहब्बत का,गाया नहीं जाता।
बेवफाई का नग्मा सुनाया नहीं जाता।
दर्द ए दिल’ की, मिरे हो गई अब इंतेहा ही ,
जख्म ए दिल’ पे मरहम लगाया नहीं जाता।
लगता है यूँ लगे बिखरने टूटकर यारो
कोई अरमाँ हसीं,अब सजाया नहीं जाता।
ना गिला है कोई ना ही कोई शिकायत की,
रूठा है इस कदर,अब मनाया नहीं जाता।
इश्क़ कहने को मानें इबादत खुदा की ‘देव’,
बेवफा के आगे सर झुकाया नहीं जाता।
✍ शायर देव मेहरानियाँ
अलवर, राजस्थान
(शायर, कवि व गीतकार)
slmehraniya@gmail.com