ग़ज़ल
अभी आंसुओं से भीगी हैं
यूं तो पलकों पे ख़्वाब बहुत हैं
हमारे दामन में कांटे ही आए
खिलने को तो गुलाब बहुत हैं
इसमें ज़िंदगी तमाम होती है
मोहब्बत में अजाब बहुत है
भगतसिंह के देश में
आजकल कसाब बहुत हैं
हर कोई मारने मरने पर उतारू है
जेहन में तेजाब बहुत है
किसी को जीने नहीं देता
जमाना खराब बहुत है