ग़ज़ल
जागती आंखों में ये खुमारी कब तक
दौरे वक़्त रहेगा भारी कब तक
सिक्का चले तुम्हारा, कोई जतन करो
बाज़ार में चलेगी रेज़गारी कब तक
ए शाहों कुछ अवाम की भी फ़िक्र करो
राज को संभालेंगे दरबारी कब तक
मंजिल आखिर चल कर ही मिलेगी
हम ढूढेंगे सवारी कब तक
हर सै पे तनी है ईमान की चादर
हमें बहकाएगे ये बुखारी कब तक
चुनावों का मौसम आया है
देखें आते हैं भिखारी कब तक
हाथ थामे कोई तो सुकून आए
बने रहेंगे हम सफारी कब तक