ग़ज़ल
“आज़मा कर देखना”
याद में मेरी कभी ख़ुद को भुलाकर देखना।
ख़्वाब आँखों ने बुने उनको चुराकर देखना।
गीत होठों के सभी क्यों आज बेगाने हुए
रख भरम में आप हमको गुनगुनाकर देखना।
फ़ासले चाहे न थे तुम दूर हमसे क्यों हुए
ज़िंदगी की इस सज़ा को तुम मिटाकर देखना।
बारिशों की बूँद में सिमटा हुआ सब दर्द है
हो सके तो रूह से अपनी लगाकर देखना।
आँख में सावन बसाकर ज़ख्म सारे पी गए
बेवफ़ा -ए-यार तू हमको रुलाकर देखना।
रूँठ जाने की अदा सीखी कहाँ से आपने
जान हाज़िर है मुहब्बत को मनाकर देखना।
हौसले उम्मीद के ‘रजनी’ सलामत हैं अभी
आज़मानी है महब्बत दिल जलाकर देखना।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका- साहित्य धरोहर