ग़ज़ल
मापनी-2122 2122 2122 212
काफ़िया-“अरने”
रदीफ़-“आ गया”
रंग खुशियों के तेरे दामन में भरने आ गया।
नफ़रतों को पर्व होली दूर करने आ गया।
भूल मजहब बैर हम सब एक-दूजे से मिलें
छोड़ कर मतभेद ये समरूप रखने आ गया।
हो गई बेरंग दुनिया भौतिकी संसार में
प्रीत का त्यौहार केसर रंग रँगने आ गया।
आज तक शोषित चमन में राजनीति फल रही
भागवा चोला पहन सद्भाव भरने आ गया।
हर तरफ़ बारूद गोली शोर छाया है अजब
खौफ़ आतंकी मिटा संगीत सजने आ गया।
भूख से पीड़ित ग़रीबी हाथ रीते ले खड़ी
ज़िंदगी में प्यार बनके पीर हरने आ गया।
वक्त निकला बेरहम ‘रजनी’ ने’ रँग डाला जहाँ
पा मुहब्बत फिर खुदा सँग साथ रहने आ गया।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी, उ. प्र.
संपादिका-साहित्य धरोहर