ग़ज़ल
ग़ज़ल
उनसे मिली निगाह तो दुनिया ये जल गयी
कुछ यूँ जले कि उनकी तो मैय्यत निकल गयी
साक़ी तुम्हारे रुख़ से ये ढलका नकाब जो
शादी शुदा थे उनकी भी नीयत फिसल गयी
क्या क्या गिनाऊँ हादसे इक हुस्न के लिए
लाठी चली कहीं पे तो बंदूक चल गयी
चमड़ी के तुम दलाल हो मैंने जो कह दिया
उनको बस एक बात मेरी ये ही खल गयी
अनपढ़ सदन में मुर्ग मुसल्लम हैं काटते
कितनों की डिग्री पेट की आतिश में जल गयी
पहलू में उसको गैर के देखा तो यूँ लगा
किस्मत हमारी मुट्ठी में आकर फिसल गयी
प्रीतम हयात जिसको समझता था अब तलक
वो तो थी इक बला जो मेरे सर से टल गयी
प्रीतम श्रावस्तवी