ग़ज़ल
जो भी मिले हँसके मिले तक़दीर जो हँसती मिले
जिसकी बहारें यार हों हर इक कली खिलती मिले//1
बिन तेल बाती दीप के मिलती नहीं है रोशनी
तुम तीर पर बैठे रहे कैसे तुम्हे मोती मिले//2
कब चैन ही आता उसे देते दग़ा अपने जिसे
कैसे खिले वो फूल भी ख़ुशबू जिसे छलती मिले//3
कैसे अनोखे लोग हैं मेहनत बिना माँगे दुवा
खाए बिना रोटी किसे इस भूख से रंगत मिले//4
रौनक नहीं आदर नहीं ख़िदमत नही चाहत नहीं
सोचें यहीं कैसी मिले अब तो मिले दावत मिले//5
आर. एस. ‘प्रीतम’
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