ग़ज़ल
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10-08-24
तुम्हें हर दम सताने की अदा भी छोड़ आये हैं।
दिमागों में भरी अपनी जफा भी छोड़ आये हैं।
दिये थे घाव जो तुमको हुई नादानियाँ भी थी-
गिराता दीन से था जो नशा भी छोड़ आये हैं।
बने थे झूठ पर ऊँचे महल जगमग अटारी सब-
बुराई से बना हर इक किला भी छोड़ आये हैं।
भलाई कर भला होगा बुराई से मिलेगा क्या ?
सुनो हम फासले का वो जिला भी छोड़ आये हैं।
मिला कुछ भी नहीं हमको इबादत खूब करके भी-
गुमानी से भरा शिकवा गिला भी छोड़ आये हैं।