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4 Aug 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

रंज दर्द ग़म फुरक़त पाओगे ज़माने में
मुब्तिला हुए गर तुम दिल यहाँ लगाने में

भूल कर वफ़ा सारी जिसने तुमको ठुकराया
बेहतरी तुम्हारी है उसको भूल जाने में

आशिक़ी में जिसके तू भूल बैठा अपनों को
वो रखेगी चिंगारी तेरे आशियाने में

तुम तो एक झटके में तोड़ देते हो लेकिन
एक उम्र लगती है आइना बनाने में

वो जो इतना हँसता है पास जाके पूछो तो
दर्द है छुपा कितना उसके मुस्कुराने में

मुफ़लिसी के आलम को उनसे पूछिए जिनकी
उम्र बीत जाती है रोटियाँ जुटाने में

दर्द ज़ख़्म तन्हाई आह के सिवा प्रीतम
और कुछ न पाओगे हुस्न के ख़ज़ाने में

सोचकर परिंदा ये रंज़ में रहे शब दिन
कौन साँप रखता है उसके आशियाने में
———–गिरह

प्रीतम श्रावस्तवी

Language: Hindi
59 Views

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