#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ अधूरा हूं मगर किस्सा नहीं हूं।।
【प्रणय प्रभात】
– भटकता हूं मगर भटका नहीं हूं।
मैं ज़िंदा हूं मगर ज़िंदा नहीं हूं।।
– अगर दे पाए तो आवाज़ दे ले।
अभो मैं मोड़ से गुज़रा नहीं हूं।।
– न उलटो वर्क़ गुज़री ज़िंदगी के।
अधूरा हूं मगर किस्सा नहीं हूं।।
– मेरी आंखों में पढ़ पाए तो पढ़ ले।
मैं कितनी रात से सोया नहीं हूं।।
– कभी ये वक़्त ही समझा सकेगा।
मैं तेरा हूं भले ख़ुद का नहीं हूं।।
– अभी कुछ और गुंजाइश बची है।
अभी मैं टूटकर बिखरा नहीं हूं।।
– खड़ा हूं आज चौराहे पे बेशक़।
पता तेरा मगर भूला नहीं हूं।।
– समझता है मुझे क्या वो ही जाने।
उसे मैं आज तक समझा नहीं हूं।।
– मेरी फ़ितरत से आंधी आशना है।
मैं तितली हूं कोई पत्ता नहीं हूं।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)