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8 Oct 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

काफ़िया-आर
रदीफ़-बिकते हैं

अजब मालिक की दुनिया है यहाँ किरदार बिकते हैं।
कहीं सत्ता कहीं ईमान औ व्यापार बिकते हैं।

पड़ी हैं बेचनी सांसें कभी खुशियाँ नहीं देखीं
निवाले को तरसते जो सरे बाज़ार बिकते हैं।

लगाई लाज की बोली निचोड़ा भूख ने जिसको
लुटाया ज़िस्म बहनों ने वहाँ रुख़सार बिकते हैं।

पहन ईमान का चोला फ़रेबी रंग बदलते हैं
वही इस पार बिकते हैं वही उस पार बिकते हैं।

सियासी दौर में ‘रजनी’ लड़ाई कुर्सियों की है
हमारे रहनुमाओं के यहाँ व्यवहार बिकते हैं।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी(उ.प्र.)
समपादिका- साहित्य धरोहर

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