ग़ज़ल
ग़ज़ल = ( 01 )
बह्र… 2212 2212 2212 2212 ,,
मुसतफ़इलुन,मुसतफ़इलुन,मुसतफ़इलुन,मुसतफ़इलुन,
क़ाफिया __ ई ,,,,रदीफ़ __सी ज़िंदगी ,,
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ग़ज़ल
1,,
ये आशिक़ी ,ये आजिज़ी,ये फलसफी सी ज़िंदगी ,
है दरबदर सी दरमियाँ , ये मयकशी सी ज़िंदगी ।
2,,
जो गुल खिले थे बाग़ में, वो धूप से ही जल गये ,
आबाद हो के मिट गई , ये मरमरी सी ज़िंदगी।
3,,
वो चाहती थी रुक सके ,जो बात हो तो सामने ,
आवारगी, दीवानगी ,ये अरदली सी ज़िंदगी ।
4,,
आज़ाद हो ,आज़ाद बन ,बढ़कर क़दम को जीत ले,
ये मुफलिसी को भूल जा ,तो कुरकुरी सी ज़िंदगी।
5,,
घटती ही जाती उम्र भी ,खुद अश्क़ को ही फेंक दो,
जीना अभी तू सीख ले , हो शायरी सी ज़िंदगी।
6,,
आता नहीं कल भी कभी ,खुद आज को तू थाम ले ,
पढ़ “नील” को समझो ज़रा, हो महजबीं सी ज़िंदगी।
✍️नील रूहानी,,,,23/04/2024,,,,,,,,,,,🥰
( नीलोफर खान , स्वरचित )
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