ग़ज़ल
ग़ज़ल –
बंदिश –इयाँ
रदीफ — निकलती हैं
मापनी–
212–1222–212–1222
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मुल्क की हिफाजत में चूडियाँ निकलती हैं,
हिंद की फिजाओं में शाबासियाँ निकलती हैं//1
हो अनाथ बचपन तो फर्ज सब निभाती हैं,
कर्ज फिर चुकाने को बेटियाँ निकलती हैं//2
नाम जब करें ऊँचा नेकियाँ बरसती हैं,
फख्र से उठाएं सिर तालियाँ निकलती हैं//3
बेटियाँ लगे नाजुक तितलियाँ बहारों सी,
जुर्म को मिटाने भी बेटियाँ निकलती हैं//4
है बुरी गुलामी तो आन की करें रक्षा,
खेल जान जौहर को रानियाँ निकलती हैं//5
✍️ सीमा गर्ग मंजरी
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश