ग़ज़ल
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ग़ज़ल —
क़ाफिया –आना
रदीफ– है
2122,1212,22
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जाम नज़रों से यूँ पिलाना है,
खो गए हम कहाँ बुलाना है।
जिंदगी काँच सी हक़ीक़त है,
साथ छूटा अभी पुराना है।
पास रहकर मिली जुदाई है,
दूर जाकर नहीं सताना है।
बाग़ में सूखते शज़र रोते,
फिर से उजड़ा वही ठिकाना है।
मौसिकी में कमाल करते हैं,
साज पर फिर नया तराना है।
✍️ सीमा गर्ग ‘मंजरी’
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश।