ग़ज़ल
दर्द अब लोरियाँ सुनाता है ।
जागकर ख़ुद मुझे सुलाता है ।
छींक फसती है गले में जब भी,
कान कहते कोई बुलाता है ।
दौर चलते हैं जब भी खाँसी के,
वक़्त खट्टा तभी खिलाता है ।
आज इज़्ज़त हुई बहुत सस्ती,
हर कोई रोज़ ही लुटाता है ।
वो बहाता है पसीना ऐंसे,
ख़ून जैसे कोई बहाता है ।
ज़िंदग़ी मौत की सहेली है,
एक आता है एक जाता है ।
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।