ग़ज़ल
जो भी हमने किया-धरा है ।
बीमारी बनकर लौटा है ।
हुई रश्म़ पूरी निकाह की,
मग़र जिस्म आधा-आधा है ।
चमक रही है काल-कोठरी,
छत पर अँधियारा छाया है ।
नफ़रत फैली मंदिर – मंदिर,
मस्ज़िद-मस्ज़िद डर फैला है ।
ताल ठोककर दावा करते,
जिनने उसे नहीं देखा है ।
ईश्वर के अपवाद बहुत हैं,
सच का ‘ईश्वर’ छुपा हुआ है ।
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।