ग़ज़ल
खौफ़ का इस कदर असर क्यूँ है ?
सहमा-सहमा-सा ये नगर क्यूँ है ?
लोग कटते हैं , लोग मरते हैं,
मुल्क़ फिर भी अजर-अमर क्यूँ है ?
जबकि फैली है हर ज़गह नफ़रत,
शायरी फिर भी सेक्युलर क्यूँ है ?
जब ख़ुदा ही बसा है रूहों में,
दुख में डूबी हरेक नज़र क्यूँ है ?
मौत के बाद मिलेगा ” ईश्वर “,
भक्त इस सच से बेख़बर क्यूँ है ?
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।