ग़ज़ल
मुसीबत की अदालत में हमारी जान तब होती
पराए और अपने की यहाँ पहचान तब होती//1
बढ़ा ताक़त मिलेगा हौंसला जग जीत जाओगे
ज़मीं से जो उठे नभ तक हक़ीक़त शान तब होती//2
तुम्हारी ज़िंदगी का छल से गुलशन खिल उजड़ जाए
मुहब्बत की ज़मीं सच में सुनो सुनसान तब होती//3
बसे दिल में खिले मन में ज़ुबाँ जब गुनगुनाती है
सुनो मशहूर दुनिया में कोई हो तान तब होती//4
तुझे देखूँ कभी भी मैं मचल कर होश खो देता
तिरी मैं आरज़ू करता लबों पर यार मुस्क़ान तब होती//5
लड़ाएँगे भिड़ाएँगे चिड़ाएँगे सभी हमको
भरोसा दोस्ती पर हो बड़ी रहमान तब होती//6
मिरे ‘प्रीतम’ तुम्ही हमदम तिरा जो साथ मिल जाए
हमारे इश्क़ की ये ज़िन्दगी सुन गान तब होती//7
आर.एस. ‘प्रीतम’