ग़ज़ल
दिल के हालात किसी से कभी कहता भी नहीं।
सबसे अच्छा जिसे समझा है,वह अच्छा भी नहीं।
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मशवरा सब ने दिया उससे दूर जाने का।
ज़िंदगी में मेरे,कुछ उसके सिवा था भी नहीं।
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ज़िंदगी भर हम ताअ़ल्लुक को निभाएंगे मगर।
यह मेरा वाअ़दा है पर उसका इरादा भी नहीं।
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मैंने ग़ज़लें भी कही जिस के लिए जा़लिम ने,
सिर्फ अशआर सुना, जज़्बे को समझा भी नहीं।
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वह मुझे याद किया करता है तन्हाई में।
मुझसे मिलता भी नहीं और मुझे भूला भी नहीं।
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राज सरबस्ता रहे इस के लिए मैंने भी।
हाल पूछा भी नहीं,मैंने बताया भी नहीं।
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जिसकी तस्वीर छुपाई है वही है दिल में।
दिल ये झूठा भी नहीं दिल पे भरोसा भी नहीं।
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दिल को भाता ही नहीं उसके सिवा क्या कीजे।
उसके बदले तो किसी को कभी सोचा भी नहीं।
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अपना महबूब चुना दिल ने बड़े ही दिल से।
उसके जैसा ना कोई है,कोई होगा भी नहीं।
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शायरी लिख दिया था खून ए जिगर से उसने।
दर्द ग़म ज़ब्त किया, फूट के रोया भी नहीं।
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दाद ओ तहसीन वोह अहबाब भला क्यों देंगे।
“सगी़र” जिनका कभी भी दिल कहीं टूटा भी नही।