ग़ज़ल
रोग मशहूर होते जा रहे हैं ।
ज़ख्म नासूर होते जा रहे हैं ।
अमंगल ही अमंगल है अभी तो,
शुक़्र काफ़ूर होते जा रहे हैं ।
अराजकता,जफ़ा औ’ बेवकूफ़ी,
ये सब दस्तूर होते जा रहे हैं ।
निमंत्रण आपदाओं का मिला है,
दर्द मंजूर होते जा रहे हैं ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।