ग़ज़ल
मुल्क की खातिर सियासत भी जरूरी है ।
पर सियासत में रफ़ाक़त भी जरूरी है ।
रख दिया तुमने जलाकर इन च़रागों को,
आँधियों से फिर हिफ़ाज़त भी जरूरी है ।
घुट रही इंसानियत तेरी खुदाई में,
सुन खुदाया अब क़यामत भी जरूरी है ।
मज़हबी घोड़ों की चालों पर फ़िदा कितने,
ऐसे लोगों से बगावत भी जरूरी है ।
हो गया तक्सीम हर दीवार आँगन तक,
घर बनाने में मुहब्बत भी जरूरी है ।
मौत पैमाइश कभी करती नहीं ज़र की,
ज़िन्दगी में कुछ इबादत भी जरूरी है ।
एक दिन ‘अरविन्द’ सबको ख़ाक होना पर,
आज मिट्टी की हिमायत भी जरुरी है ।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०