ग़ज़ल
इश्क़ की हर एक कहानी से किनारा कर लिया ।
कफ़्न लेकर ज़िन्दगानी से किनारा कर लिया ।
था बहुत मशगूल यारों उल्फ़तों की शाम में,
अब जहां की हर ज़वानी से किनारा कर लिया ।
देखकर हालात गुलशन के ये दिल बेज़ार सा,
मैंने भी फिर बागबानी से किनारा कर लिया ।
मुल्क की हालत पे यूँ ख़ामोश बैठें कब तलक,
हमनें आखिर बेज़ुबानी से किनारा कर लिया ।
छटपटाते लोग हैं ‘अरविन्द’ जख़्मों से जहाँ,
मैंने भी फिर शादमानी से किनारा कर लिया ।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०