ग़ज़ल
एक मुद्दत तक सिरहाने ग़म रहा ।
इसलिए तकिया हमेशा नम रहा ।
रोज़ पढ़ना , रोज़ लिखना याद है,
जो पढ़ा औ’ जो लिखा वो कम रहा ।
दिल के भीतर जल रही थी जब शमाँ,
उस समय आँखों के आगे तम रहा ।
घर चमन था बन गया सेहरा, मग़र
एक “ईश्वर” की कृपा का दम रहा ।
०००
—— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।