ग़ज़ल
हादसा – सा हो गया था ।
मैं जो , पैदा हो गया था ।
कर्ज़ चुकता हो गया था ।
फ़र्ज़ पूरा हो गया था ।
हसरतें अब भी ज़वाँ थीं,
वक़्त बूढ़ा हो गया था ।
हो रहा है जाने क्या-क्या ?
जाने क्या-क्या हो गया था ?
आदमी उतने ही थे , पर
ख़र्च दुगना हो गया था ।
हुई नहीं थी मदद उतनी,
जितना चर्चा हो गया था ।
घुस के जो , देखे तमाशे,
ख़ुद तमाशा हो गया था ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।