ग़ज़ल
आदमी से मिलके जाना, आदमी क्या चीज़ है ?
आदमी होकर ये देखा, ज़िन्दगी क्या चीज़ है ?
नफ़रतों की देहरी पै पाँव रखना ही पड़ा,
ज्यों हुए भीतर तो जाना आशिकी क्या चीज़ है ?
दूब के नाजुक पलंग पर कंकड़ों की सिलबटें,
होश में आए तो जाना बेख़ुदी क्या चीज़ है ?
वो क्या जाने ? मर गए जो बेवजह, वेवक्त यूँ,
रोज़ मरके,जीके जाना ख़ुदकुशी क्या चीज़ है ?