ग़ज़ल
एक मीठी – सी सजा है ज़िन्दगी ।
रोग भी है औ’ दवा है ज़िन्दगी ।
मौत पर ही ख़त्म हो जिसका असर,
वो मुसलसल-सा नशा है ज़िन्दगी ।
खोज़ती है सिर्फ़ ज़र, जोरू, ज़मीं,
बेवकूफ़ी पर फिदा है ज़िन्दगी ।
रंग गिरगिट-सा बदलता , देख लो
बेवफ़ा है , बा-वफ़ा है ज़िन्दगी ।
सिर्फ़ जीने की कला आती, उन्हें
फ़ायदा – दर – फ़ायदा है ज़िन्दगी ।
ख़ोजता है रोज़ वो शामो-ओ-सहर,
आदमी से लापता है ज़िन्दगी ।
नाम ‘ईश्वर’ है मेरा बस, इसलिए
जानता हूँ मैं कि क्या है ज़िन्दगी ।
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— ईश्वर दयाल गोस्वामी