ग़ज़ल
पहले दाएँ मुड़कर देखो ।
फिर बाएँ से जुड़कर देखो ।
बैठे हो क्यों पंख सिकोड़े,
खुले गगन में उड़कर देखो ।
फैल – फैल कर फैल गए हो,
अब तो ज़रा सिकुड़कर देखो ।
बहुत चिढ़ाया है बाहर को,
थोड़ा भीतर कुढ़कर देखो ।
दारू, सट्टा, बीड़ी, गाँजा,
इनकी लत से छुड़कर देखो ।