ग़ज़ल
इस लम्हे, मैं सस्ता हूँ ।
उस लम्हे, मैं मँहगा हूँ ।
राहू लील नहीं पाता,
चाँद – सरीखा टेढ़ा हूँ ।
बाहर भीड़ बहुत है मेरे,
भीतर – भीतर तन्हा हूँ ।
छोड़ूँगा अपने पीछे,
मैं वो एक ज़माना हूँ ।
गीत पिता औ’ माता का,
“ईश्वर” का अफसाना हूँ ।
०००
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी