ग़ज़ल
तुम हो तो अब सब सुंदर है ।
घर लगता है , अपना घर है ।
पायल भरकर ममता छलके,
बिछड़ी-सा लालित्य सुगर है ।
बिंदिया-सा व्यवहार दमकता,
कुमकुम-सा आदर्श प्रखर है ।
प्यार खनकता चूड़ी जैसा,
अंदर भी है और बाहर है ।
मधुर लगे बर्तन की खनखन,
झुमके की लटकन सुंदर है ।
सूत्र तेरे मंगल कारक हैं,
जिह्वा पर केवल आदर है ।
“ईश्वर” का ‘लक्ष्मी’ से नाता,
प्रलयकाल से अजर-अमर है ।
००००००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।