ग़ज़ल
हत्यारे , गद्दार देखिए ।
कितने हैं ? मक्क़ार देखिए ।
लूट , रेप औ ‘ इश़्तहार से ,
भरे पड़े अख़बार देखिए ।
पल दो पल की ख़ुशी मिली तो ,
फिर दुख का बाज़ार देखिए ।
नदिया पूरी ज़हरीली है ,
आर देखिए , पार देखिए ।
मर्यादा का नाम नहीं है ,
जग़ह-जग़ह धिक्कार देखिए ।
विक्रेता ” ईश्वर ” के मिलते ,
मज़हब़ का व्यापार देखिए ।
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।