ग़ज़ल
क़िस्मत ने दिल्लगी की किसका कसूर माने।
ओ आसमान वाले तेरा ही नूर मानें।
खेले अजब अनोखे सब खेल जिंदगानी,
हम खेल में अनाड़ी खुद को लंँगूर माने।।
तेरे जहां में कोई मिलता नहीं सहारा,
खुद को खुदा बता क्या अटका खजूर माने।
पानी में नेकी डाली बाकी बचा न कुछ भी
जल के हवन में जलवा खुद का हुजूर माने।।
हो ख़ाक जिंदगानी आ कर मिले अगर तू,
रहबर पनाह से हम क्यूँ खुद को दूर मानें।।
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)