ग़ज़ल
गर बड़े हो जाओ तो तुम ख़ुद को अक्सर देखना
झाँकते रहना बराबर दिल के अंदर देखना
ज़िन्दगी से सारी ख़ुशियाँ कैसे होतीं लापता
दिल किसी इक महज़बीं से तुम लगा कर देखना
ये बुलंदी किस तरह हासिल हुई उसको यहाँ
है लिखी सारी कहानी आबलों पर देखना
ज़िन्दगी के इस सफ़र में मिलते हैं लाखों मगर
कौन है रहजन यहाँ पर कौन रहबर देखना
दिल के हुजरे में हमेशा ध्यान से रखना इसे
दिल बड़ा नाज़ुक है मेरा बन्दा परवर देखना
हरिजनों की बस्तियों में नूर है या तीरगी
पाँच सालों में कभी इक बार जाकर देखना
ऐब ग़ैरों के गिनाते फिरते हो प्रीतम अगर
अपनी कमियाँ आइने में तुम नज़र भर देखना
प्रीतम श्रावस्तवी