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2 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

खिले थे ख्वाब जो दिल के बगीचे से ।
करीने से वो बिखराए गए हैं ।
मुझ रहगुजर को ये गुमाँ न था,
शूल राहों में बिखराये गए हैं |
बने हैं दोस्त जो दुश्मन हमारे,
ये सारे लोग उकसाये गये हैं।
हमीं ने ही जमाने को संभाला
हमीं भुलाये पाये गये हैं।
लिवासे मुखलिसी ,पहनाये गये हैं
शौरत से ये महकाये गये हैं|
रखें थे सदा ही अज़ीज़ सम्भाले
करीने से ओ बिखराए गए हैं ||
रेखा मोहन

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