ग़ज़ल
कभी मज़बूरियों से हार दिल कमज़ोर मत करना
सफ़र काँटों भरा हो पर ग़ुलों को याद कर चलना/1
बड़ी हो सोच मानव की हिला कोई नहीं सकता
जहाँ बरगद वहाँ तरु और की फ़ीकी रहे तुलना/2
जो झुकना जानता है वो झुकाने का हुनर रखता
किसी भी वृद्ध से मिलना अदब से झुक यहाँ मिलना/3
मिटा दो तुम सजालो तुम मगर सपने सदा देखो
अगर आए बुरा सपना डरो मत सीख ले बढ़ना/4
जलाना दिल मिटाना बिल बुराई है बुरा मानो
हँसे पाकर तुम्हें कोई बनो सुंदर हसीं पलना/5
पसीने की कमाई तो हमेशा सुख सदा देती
बिना जो खाद उगती घास जैसे ही भले खिलना/6
अरे ‘प्रीतम’ लुभाती है जवानी भी ज़ुबानी भी
परे इनसे सजग होकर गुलाबो़ं-सम ज़रा खिलना/7
आर. एस. ‘प्रीतम’