ग़ज़ल
हवा-पानी पे है पहरा तुम्हारा
यहाँ हर चीज़ पर कब्ज़ा तुम्हारा
उसी के हिस्से में आएगी बोटी
रहेगा बनके जो कुत्ता तुम्हारा
ज़रा तुम रुख़ से ये परदा हटाओ
ज़माना देखेगा चेहरा तुम्हारा
नज़र आएगी तब सच्चाई तुमको
उतर जाएगा जब चश्मा तुम्हारा
यहाँ पर ‘नूर’ सब पत्थर-हृदय हैं
सुनेगा कौन ये दुखड़ा तुम्हारा
✍️जितेन्द्र कुमार ‘नूर’
असिस्टेंट प्रोफेसर
डी० ए० वी० पी० जी० कॉलेज
आज़मगढ़