ग़ज़ल
ग़ज़ल
सिखाया ज़िंदगी ने ज़ख्म क्यों भरते उभरते हैं
किसी तालीम की ख़ातिर मुहब्बत ये भी करते हैं/1
मिले जो भी नज़ारा सुन उसे दिल में बसा लेना
कभी टूटे हुए पत्ते नहीं शाखों से जुड़ते हैं/2
सभी ने वक़्त को कोसा शिक़ायत की है क़िस्मत से
कभी ख़ुद से नहीं पूछा ग़मों से हम क्यों टलते हैं/3
किसी को धूप प्यारी है किसी को छाँव की चाहत
हिमायत हम हमारी क्यों यहाँ ऊँची ही रखते हैं/4
नहीं मतलब किसी से है नहीं है आरज़ू उल्फ़त
मगर क्यों ज़श्न के दीपक इबादत में ही जलते हैं/5
ग़ज़ल किसकी हिफाज़त में लिखी मैंने नहीं जाना
यहाँ हर शब्द पर ज़ादू किसी छाती को छलते हैं/6
समझ आए न आए तो लिखो बोलो बताओ तो
मिले रब का लिखा ‘प्रीतम’ मगर दिल क्यों ये हिलते हैं/7
आर. एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल