*ग़ज़ल*
सुनाओ दर्द अपना तुम निकलकर हल भी आएगा
अँधेरा आज है तो क्या उजाला कल भी आएगा/1
छिपाए राज बीमारी लगा देंगे छिपाओ मत
लगा है नल अगर प्यारे कभी तो जल भी आएगा/2
मनाओ ज़श्न पर हमको बुला लेना मुहब्बत से
मिटा है प्यार अनजाने दुबारा खिल भी आएगा/3
जताते हो बताते हो निभाते पर नहीं उल्फ़त
सुहाने हर सफ़र के बाद चलकर छल भी आएगा/4
जिसे चाहो दग़ा उससे कभी करना नहीं भूले
रुलाए ख़ून के आँसू नहीं तो पल भी आएगा/5
कभी देखो कहीं देखो मगर देखो मुहब्बत से
बड़ा प्यारा नफ़ासत का क़दर कर फल भी आएगा/6
तुम्हारा दिल चमन से कम नहीं ‘प्रीतम’ अगर सुनलो
बहारों का लिए चाहत फ़िदा हो दल भी आएगा/7
आर. एस. ‘प्रीतम’